-रमेश मनोहरा
‘इस अलका की तो मति मारी गई थी, जो अच्छा-भला लड़का मिला था, मगर शादी के लिये इंकार कर दिया।‘
‘यदि शादी कर लेती तो चार बच्चों की मां बन जाती।‘
‘अरे इसने भाई के खातिर शादी नहीं की।‘ भाई का ब्याह कर अपना फर्ज पूरा कर लिया।‘
‘देखना थोड़े दिनों बाद यहीं भाई इसे पूछेगा नहीं।‘
‘हां-हां बिलकुल नहीं पूछेगा, फिर इसे पता चलेगा कि शादी कर लेती तो कितना अच्छा होता।‘
‘अरे अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, शादी की हां कह दे तो लड़कों की लाइन लगा दूंगी।‘
‘परन्तु अब इससे करेगा कौन शादी?’ आधी बूढ़ी तो हो चली है।
अलका जब कमरे में प्रवेश करने जा रही थी तभी बुआजी बुजुर्ग औरतों के मध्य बैठी उसी के बारे में टीका-टिप्पणी कर रही थी। आगे की बात उसने नहीं सुनी, अपने कमरे में आकर पलंग पर लेट गई। भीतर से वह जरूर आहत हुई थी, मगर आंसू बाहर नहीं निकल पा रहे थे। अभी थोड़ी देर पहले ही वह अपने एकमात्र भाई पवन की शादी कर लौटी है। जो करीब के रिश्तेदार बारात के संग गये थे, वे सब अपनी थकान उतार रहे थे, मगर अलका चाहते हुए भी नहीं सो पा रही थी। अतीत का एक-एक दृश्य उसकी आंखों के सामने घूम रहा था।
मां ने कहा था- वह शादी के 12 वर्ष बाद पैदा हुई थी, उसके पैदा होते ही उन पर बांझ का दाग मिट चुका था। तब बहुत खुशियां मनाई गई थीं, यही कारण था वह लाड़-प्यार में पली थी। इसे विधि की विडम्बना कहिये कि उसके जन्म के 12 साल बाद भाई आया था, तब मां और बाबूजी की खुशियां का पारावार न था। खूब खुशियाँ मनाई गई थीं, उनके बुढ़ापे के सहारे के साथ उनके खानदान का चिराग जलाने वाला जो मिल गया था। देखते ही देखते दस वर्ष ऐसे बीत गये कि कुछ भी पता नहीं चला उसका भाई स्कूल जाने लगा, उसने एम.ए. कर पी.एच.डी. कर ली थी। वह प्रतियोगी परीक्षा में बैठने लगी। इसी बीच बाबूजी को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। उसके लिये कई लड़के देखने शुरू कर दिये थे मगर उसके लायक कोई लड़का नहीं मिल पा रहा था। दरअसल, लड़के तो बहुत से मिले थे मगर पिताजी उसकी शादी किसी अधिकारी के साथ करना चाहते थे। जो लड़के मिले उससे कम पढ़े-लिखे होने के साथ ही शासकीय नौकरी में ऊंचे पदों पर नहीं थे। आखिर बाबूजी उसके लिये लड़के देखते-देखते हार गये थे। तब वे बहुत अधिक चिंतित इसलिये रहने लगे थे कि वह पूर्ण व्यस्क हो चुकी थी। मगर इसी बीच शासकीय महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद पर उसकी नौकरी लग गई। उसने तत्काल ‘ज्वाइन‘ कर लिया। चूंकि नौकरी दूसरे शहर में लगी थी। अत: वह अप-डाउन करने लगी। उसकी नौकरी लगने से यह फायदा हुआ कि अब लड़के वाले स्वयं ही उसके लिये रिश्ते लेकर आने लगे मगर फैसला तो उसे और उसके पिता को करना था। आखिर बाबूजी ने पंकज को पसंद कर लिया था। पंकज एस.डी.ओ. के पद पर कार्यरत थे। थोड़े दिन पश्चात ही सगाई की रस्म भी पूरी हो गई थी। अच्छा-सा मुहूर्त निकलवाकर शादी की तैयारियां बाबूजी ने शुरू कर दी थी।
मगर इसी बीच घर पर कुठाराघात हुआ। बाबूजी शिक्षा विभाग में व्याख्याता के पद पर कार्यरत थे। उस दिन प्राचार्य महोदय ने किसी जरूरी कार्य से छुट्टी वाले दिन बुला लिया था। जब वे स्कूटर पर बैठकर विद्यालय जा रहे थे मोड़ पर तेजी से आ रही बस से उनके स्कूटर की टक्कर हो गई उनका घटना स्थल पर ही प्राणांत हो गया। जब बाबूजी का शव घर पहुंचा तब उनके शव पर वह और मां फूट-फूटकर रोई थीं। मां ने तो अपनी चूडिय़ां तोड़ डाली थीं। इस घटना ने मां को भीतर तक हिलाकर रख दिया था। बाबूजी की तेरहवीं तक तो रिश्तेदारों ने मां को खूब साहस दिलाया था। इस तरह टूट कर रहोगी तो काम कैसे चलेगा। जवान बेटी का ब्याह करना है और बेटे को भी पालना है। दोहरी जवाबदारी है तुम पर मगर मां और फूट-फूटकर रोने लगी। तेरहवीं के बाद जब सारे रिश्तेदार चले गये, तब मां इस सदमे से कई दिनों तक उबर नहीं पाई थी। उसकी शादी की जो तारीख जो बाबूजी ने तय की थी। वह स्थगित हो गई थी। जितना पैसा बाबूजी को मिलना था, वह मिल चुका था। मां को अनुकम्पा नियुक्ति बाबूजी की जगह मिल गई थी मगर उसने इसलिये मना कर दिया कि पुत्र व्यस्क हो जायेगा। तब उसे ही लगायेगी। फिर भी मां बाबूजी की याद में हर समय खोई- खोई रहती थी। मां की ऐसी दयनीय दशा देखकर उसने दृढ़ फैसला कर लिया था कि वह बाबूजी का दायित्व सम्भालेगी, मां की देख रेख करेगी और भाई को पढ़ा लिखाकर उसकी शादी करेगी और सचमुच उसने बाबूजी का दायित्व सम्भाल लिया था।
अब घर धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर लौटने लगा। बाबूजी को गुजरे सात महीने से अधिक हो गये थे। उसके ससुराल वाले भी शादी की जल्दी मचाने लगे। मां को बार-बार रिश्तेदारों के माध्यम से समाचार आने लगे, तब मां ने भी हलचल प्रारंभ कर दी। बाबूजी की बरसी के बाद मां ने उसकी शादी करने का फैसला कर लिया था। ऐसी स्थिति में उसने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था- मां मैं अभी शादी नहीं करूंगी, तुम्हारी देखभाल करना है और भाई की शादी। ‘तुम्हारा भाई अभी बहुत छोटा है अलका जब तक वह जवान होगा, तब तक क्या पंकज इंतजार करेगा? मां उसे समझाती हुई बोली- इसलिये अभी तुम पंकज से शादी कर लो।‘
‘देखो मां, बाबूजी जिस दुर्घटना से गुजरे हैं, उस हादसे से अभी भी तुम भीतर तक टूटी हुई हो? मेरी शादी की चिंता छोड़ो, मैं जरूरत होगी, तब शादी कर लूंगी?’
‘मगर जब तक तो तुम्हारी शादी की उम्र निकल जायेगी। इसलिए अभी तुम पंकज से शादी कर लो बेटी।‘ एक बार फिर मां उसे समझाती हुई बोली थी- तब उसने इंकार करते हुए कहा था- मां मुझे विवश मत करो शादी करने के लिए। मैं शादी नहीं करूंगी। मगर तुम्हारे ससुराल वाले बार-बार संदेश भिजवा रहे हैं। कह रहे हैं कब कर रहे हो शादी।
‘देखो मां, उन्हें जल्दी है तो वे दूसरी लड़की देख लें। मुझे तुम्हारे और भाई के खातिर नहीं करना है शादी।‘ एक बार फिर स्पष्टï उत्तर देती हुई वह बोली थी। तब मां ने उसे सामाजिक दृष्टिकोण से खूब समझाया था। मगर वह अपनी बात से जरा भी टस से मस नहीं हुई थी। रिश्तेदारों ने भी शादी के लिए बहुत दबाव डाला था। बुआजी ने तो उसकी शादी के लिए खूब भला-बुरा कहा था। वह जरा भी विचलित नहीं हुई थी। आखिर उसके दृढ़ फैसले के आगे सबको हार माननी पड़ी थी। इसका परिणाम यह हुआ पंकज के साथ उसकी सगाई टूट गई और उसने दूसरी लड़की से शादी कर ली।
सच, पुरुष प्रधान समाज में नारी का अकेला रहना कितना खतरनाक होता है, यह सारा कटु अनुभव उसने बाबूजी के गुजरने के बाद पाया था। आज बाबूजी को गुजरे 15 वर्ष हो गये थे। 15 वर्ष ऐसे बीत गये, मानो कल की बात हो? इन वर्षों में उसने कई उतार-चढ़ाव देखे। कई बाधाएं भी आई थीं, मगर उसने इन सब बाधाओं का सामना डटकर किया था। करीब के रिश्तेदारों ने तो उसके बारे में यहां तक अफवाह उड़ा दी थी कि जिस कॉलेज में वह पढ़ाती है, उस कॉलेज में एक सहपाठी के साथ उसका रोमान्स चल रहा है। और भी न जाने कितनी-कितनी बातें उसने अपने बारे में सुनी थीं। मगर उसने उन बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया था। आज वह 35 वर्ष की हो गई। बाल भी कहीं-कहीं सफेद हो गये। उसने बाबूजी का दायित्व पूरी तरह से निभा दिया था। भाई की शादी कर उसकी गृहस्थी बसा दी। अब उसकी शादी करने की जरा भी इच्छा नहीं है फिर भी बुआजी और उनकी मंडली शादी करवाने की इच्छुक हैं।
‘अरे बेटी, अकेली बैठी क्या सोच रही है?’ मां ने आकर उसकी सारी विचार श्रृंखला तोड़ दी, तब वह अतीत से वर्तमान में लौटी। आखिर आंसूओं को न रोक सकी, आंसू पोंछती हुई बोली कुछ नहीं मां?
‘तेरी आंखों में आसूं, क्या हो गया तुझे?’
‘नहीं मां मुझे तो कुछ नहीं हुआ ये तो खुशी के आंसू हैं।‘ अन्तरपीड़ा छिपाती हुई वह बोली।
‘मैं तेरी मां हूं और मां प्रथम गुरु होती है। उससे कुछ नहीं छिपाना चाहिए बता किसी ने क्या कह दिया तुझे।‘आखिर मां कुरेदती हुई फिर बोली।
‘मुझे तो किसी ने कुछ नहीं कहा।‘
‘झूठ मत बोल अलका, जिस लड़की की आंखों में मैंने कभी आंसू नहीं देखे, वह इतनी उदास क्यों है? वह भी ऐसे समय में जब तुमने अपने भाई की शादी कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली- बोल किसी ने तुझसे कुछ कहा है क्या… बोल न।‘
‘ओह! मां वही बुआजी और उनकी मंडली है।‘
‘जरूर उन्होंने तुझे शादी के लिए उकसाया होगा। पर उन्होंने जो कुछ कहा है गलत नहीं कहा है, अब कर क्यों नहीं लेती शादी।‘ उसने भी उसे कुरेदते हुए कहा।
‘मां तुम भी बुआजी का पक्ष ले रही हो। अब कौन करेगा मुझ अधबूढ़ी से शादी?’
‘लड़का तो तुझसे शादी करने के लिए तैयार है। बस तू हां कह दे।‘
‘लगता है मां तुम भी बुआजी से मिल गई हो?’
‘ऐसा ही समझो।‘
‘तो बताओ कौन-सा लड़का देखा है तुमने?’
‘पहले हां कहो, क्योंकि तुम जब से खुद ही फैसला करने लगी हो, तब से मैं घबराने लगी हूं। मगर इतना जरूर कह दूं। लड़के की पहली पत्नी ब्लड कैंसर से गुजर चुकी है, जिसके 2 छोटे बच्चे हैं।‘
‘क्या कहा मां, जिसकी पहली पत्नी गुजर गई, जिसकी 2 संतानें हैं’ थोड़ी नाराज होती हुई अलका बोली। ऐसे के साथ तुम मेरी शादी करना चाहती हो?
‘नाराज न हो बेटी बात को समझ।‘ समझाती हुई मां बोली- अब तुझसे कौन करेगा शादी? जब तुम खुद अपने आप को आधी बूढ़ी बताती हो।
जब कल तू भाई की शादी में व्यस्त थी। तब वह मेरे पास आकर बहुत देर तक बैठा रहा, खूब गिड़गिड़ाया, बहुत जोर देकर मुझसे कहा- मां, तुम्ही अलका को शादी के लिए राजी कर लो। मैं उससे शादी करने के लिए तैयार हूं। मगर तुझे उसकी दोनों संतानों को भी अपनाना पड़ेगा।
‘तुम पंकज की बात तो नहीं कर रही हो?’ ‘हां वही पंकज, जिससे तुमने सगाई तोड़ी थी, वही तुझसे शादी करने के लिए तैयार है।‘ मां ने यह कहकर इस विश्वास के साथ उसकी तरफ देखा कि वह अपनी स्वीकृति की मुहर लगायेगी। वह जानती है मां ने भी उसकी खातिर रिश्तेदारों के कितने ताने-उलाहने सहे हैं। लोग, उसके बारे में अनर्गल प्रलाप उगलते रहे हैं। उसकी खातिर मां ने कई आंतरिक पीड़ाएं झेली हैं।
उसे चुप देखकर मां फिर बोली- बेटी, तुमने जवाब नहीं दिया। मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम इंकार नहीं करोगी। तब वह मां की भावनाओं को ध्यान में रखती हुई बोली- मां मैं पंकज से शादी करने के लिए तैयार हूं। अलका की इस स्वीकृति से मां की खुशियों का पारावार न था। मां को लगा वह कई दिनों से जिस अंधेरे में रह रही थी, आज उस अंधेरे से मुक्त हो गई है(विफी)