चोटिल व घायल मानवता की नींव पर विश्व शान्ति सम्भव नहीं-स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश: परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने भारत के पड़ोसी देश में हो रही मानवता की हत्या चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि बांग्लादेश में हो रही हिंसा ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर हुये विवाद व विरोध प्रदर्शन ने हिंसक घटनाओं का रूप ले लिया जो कि देखते ही देखते धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव में बदल गया। वहां पर रहने वाले हिन्दू भाई-बहनों,हिंदू मंदिरों और पूजा पंडालों पर हमले ने भारत की आत्मा को भी हिला दिया। वहां रहने वाले हिन्दू भाई-बहनों के साथ जो हुआ वह बहुत ही दर्दनाक है। समस्या कोई भी हो या कितनी भी बड़ी हो सभी का समाधान संविधान में निहित है और सभी समस्याओं का हल संवाद के माध्यम से निकाला जा सकता है। निश्चित रूप से वहां रहने वाले सभी हिन्दू भाई-बहनों को अपनी एकता की शक्ति को दिखाना होगा,अपने व अपनों के लिये खड़ा होना होगा। संगठन की शक्ति बहुत कुछ कर सकती है। स्वामी जी ने कहा कि शांति और सद्भावना हिन्दू धर्म के मूल में है जिसका पालन प्रत्येक हिन्दू करता है और संवाद के माध्यम से समस्याओं का समाधान खोजता है। बांग्लादेश में जो आन्दोलनकारी व प्रदर्शनकारी थे वे आरक्षण के विषय से हिंसा पर उतर आये बल्कि इस समस्या का शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सकता है। अब भी समय है अपनी गलती को दोहराने के बजाय हिंसा से प्रभावित लोगों को भोजन, चिकित्सा सहायता और आश्रय प्रदान कर अपने राष्ट्र की सेवा करने हेतु बांग्लादेश के निवासियों को आगे आना होगा। जब तक आंतरिक हिंसा नहीं रूकेगी बाहरी शक्तियां भी प्रभावी नहीं हो सकती। वर्तमान समय में जो हिंसा फैली है उसके परिणाम केवल उन हिंसा प्रभावित लोगों को ही प्रभावित नहीं कर रहे बल्कि इस हिंसा के दुष्प्रभावों की भरपायी नहीं की जा सकती और इसके परिणाम भी राष्ट्रव्यापी होंगे। अब भी समय है कि सभी मिलकर आपसी एकता और भाईचारे को बढ़ावा दें, आपसी समझ को बढ़ायें और एक-दूसरे के करीब आयें ताकि देश में शांति और स्थिरता स्थापित हो सके। हमारी भूमिका समाज में शांति,सद्भावना और एकता को बढ़ावा देने की होनी चाहिये। लोगों को हिंसा से दूर रहने और संवाद के माध्यम से समस्याओं का समाधान खोजने के लिए प्रेरित करना जरूरी है। स्वामी जी ने कहा कि हिंसा के माध्यम से किसी समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता है। नैतिकता और आध्यात्मिकता ही शांति, प्रेम और सहिष्णुता का आधार हैं। इसी के आधार पर समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और हिंसा को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बांग्लादेश की उथल-पुथल न केवल बांग्लादेश के लिये बल्कि भारत सहित अन्य राष्ट्रों के लिये भी चिंतन का विषय है। वर्तमान समय में चल रही अशांति के कारण जो आपसी विश्वास की श्रृंखलाएँ टूट गई हैं उसे मिलकर जोड़ना होगा और मानव-मानव एक समान के सूत्र पर मानवता के लिये कार्य करना होगा। साथ ही साथ हमें बाहरी किसी ऐसी शक्ति को न तो समर्थन देना है और न ही सहयोग लेना है जो कि आने वाले भविष्य के लिये एक नया संकट पैदा कर सके इसलिये अभी समय है और सही समय है। सभी मिलकर कार्य करे ताकि देश में अमन व शान्ति हो। हिंसा का समाधान कभी भी हिंसा से नहीं हो सकता इसलिये हिंसा को रोकना और ऐसे उपायों को खोजना जिसमें मानवता चोटिल न हो न ही घायल हो यह जरूरी है क्योंकि मानवता की हत्या अर्थात नैतिकता की हत्या।